ISBN: 9789391734510
Year: 2022
Binding: Hardbound
Language: Hindi
Total Pages: 252
प्रकाशन के बारे में
मृदा स्वास्थ्य एक बहुआयामी अर्थों को समाहित करने वाला शब्द है। इसका सरलतम अर्थ है कि मृदा के द्वारा पौधों को उत्तम वृद्धि एवं विकास के लिए अनुकूल दशाएँ प्रदान करने वाली परिस्थितियों को उपलब्ध कराया जाना। जिसके अंतर्गत मृदा के द्वारा पौधों को वांछित मात्रा में पोषक तत्वों की आपूर्ति, मृदा में पर्याप्त मात्रा में वायु संचार, मृदा की पर्याप्त जल धारण क्षमता. मृदा में सूक्ष्मजीवों की वांछित संख्या एवं उनकी निरंतर क्रियाशीलता, सूक्ष्मजीवों के द्वारा पोषक तत्वों की उपलब्धता बढाने के साथ-साथ पौध वृद्धि में सहायक हार्मोन्स, एंजाइम्स आदि का भरपूर मात्रा में निर्माण करना, मृदाजनित रोगों के कारकों की रोकथाम करना आदि सम्मिलित है।
फसल उत्पादन में वृद्धि करने हेतु उन्नत तकनीकी के सभी आधुनिक साधनों यथा-उर्वरक, सिंचाई, उन्नत बीज, कीटनाशक, नींदानाशक व रोगनाशकों आदि का पूर्ण लाभ प्राप्त करने तथा उनकी उपयोग क्षमता बढ़ाने के लिए उत्तम मृदा स्वास्थ्य पहली आवश्यकता होती है। आर्थिक प्रतिस्पर्धा के इस वर्तमान दौर में किसानों के बीच फसलों की अधिकतम पैदावार प्राप्त करने की होड़ लगी हुई है। जिस कारण से जाने अनजाने में मृदा स्वास्थ्य की घोर उपेक्षा की जा रही है। परिणाम स्वरूप फसलोत्पादन की लागत में अनावश्यक वृद्धि होने से शुद्ध लाभ एवं लाभ-लागत अनुपात में गिरावट दर्ज की जा रही है। साथ ही पर्यावरण का संतुलन बिगड़ता जा रहा है और लाभ की खेती करना बाधित हो रहा है। सारांश में कृषिगत तकनीकी समस्याओं की जटिलता एवं बारम्बारता में अप्रत्याशित वृद्धि होती जा रही है।
की जटिलता एवं बारम्बारता में अप्रत्याशित वृद्धि होती जा रही है।
सैकड़ों वर्षों पूर्व कृषि पाराशर का यह कथन कि “खेत सोना उगलते हैं यदि उनका समुचित प्रबंधन किया जाय किन्तु उनकी उपेक्षा दरिद्रता की ओर ले जाती है" आज भी उतना ही प्रासंगिक है। अतः टिकाऊ खेती अर्थात् पर्यावरण मित्रवत लाभदायक खेती करने के लिए मृदा स्वास्थ्य में निरंतर गुणात्मक अभिवृद्धि करने की महती आवश्यकता है। आशा है कि यह प्रकाशन किसानों, मैदानी विस्तार कार्यकर्ताओं, कृषि छात्रों एवं कृषि विकास से संबंधित विभागों के लिए उपयोगी एवं नई दिशा प्रदान करने वाला सिद्ध होगा।
डॉ. अनिल कुमार सिंह का जन्म सन् 1971 में हुआ। उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से कृषि रसायन एवं मृदा विज्ञान में स्नात्कोत्तर तथा डॉ. बी. आर. अम्बेडकर विश्वविद्यालय, आगरा (उ.प्र.) से डॉक्टोरेट की उपाधि प्राप्त की। डॉ. सिंह प्रारम्भ में राजा बलवंत सिंह कॉलेज आगरा में एक अनुसंधान परियोजना में क्षेत्र सहायक रहे तत्पश्चात उन्होंने केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान, लखनऊ में जूनियर रिसर्च फेलो के रूप में अल्पअवधि सेवा की। सुदूर संवेदन उपयोग केन्द्र उत्तर प्रदेश, लखनऊ में परियोजना वैज्ञानिक के रूप में उन्होंने जून 1994 से जनवरी, 2007 तक 12 वर्ष से अधिक समय तक कार्य किया। वे 27 जनवरी 2007 को जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर में वैज्ञानिक (मृदा विज्ञान और कृषि रसायन) के रूप में पदस्थापित हुए उन्होंने मृदा विज्ञान, रिमोट सेंसिंग और जीआईएस के क्षेत्र में कई उन्नत प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में भाग लिया। कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार व संगोष्ठी में भाग लेकर उन्होंने 18 शोध पत्र प्रस्तुत किए। उनकी साख में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित 35 शोध पत्र प्रतिष्ठित खेती पत्रिकाओं और कृषि समाचार पत्रों में 130 लोकप्रिय लेख, 85 प्रसार पत्रक व पैम्फलेट और पांच पुस्तक अध्याय शामिल हैं। वे तीन किताबों, 10 तकनीकी बुलेटिन, एक प्रयोगशाला मैनुअल और तीन प्रशिक्षण मैनुअल के लेखक है। इसके अलावा कई शोध और तकनीकी रिपोर्ट, सफलता की कहानियां और केस स्टडीज उनके द्वारा तैयार किए गए हैं। उन्होंने मृदा परीक्षण, मृदा परीक्षण के महत्व, पोषक तत्वों के संतुलित अनुप्रयोग, मृदा स्वास्थ्य और पोषक तत्व प्रबंधन, और फसलों के निरंतर उत्पादन और उत्पादकता के लिए एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन पर 23 आकाशवाणी तथा 8 टीवी वार्ताएं दी हैं। उन्हें विभिन्न सोसाइटियों द्वारा कई प्रतिष्ठित अवार्ड प्रदान किये गये हैं।
डॉ. श्याम रंजन कुमार सिंह, ए. आर. एस. में शीर्ष पर रहे और विवेकानंद पर्वतीय कृषि विज्ञान संस्थान (आईसीएआर), अल्मोड़ा, उत्तराखंड में वैज्ञानिक (कृषि विस्तार) के रूप में अपना करियर शुरू किया। उन्होंने कृषि विज्ञान संस्थान, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी (यू.पी.) से कृषि में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने एम.एससी और पीएच.डी. डेयरी विस्तार में राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल (हरियाणा) से पूरी की। उन्होंने पूरे शैक्षणिक काल में योग्यता छात्रवृत्ति प्राप्त की।
डॉ. सिंह वर्तमान में भारत में भा.कृ. अनु. परि. अटारी, जबलपुर, प्रधान वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत हैं। वह दस पुरस्कारों के प्राप्तकर्ता हैं जिनमें एसईई फेलो अवार्ड, आईएसईई फेलो अवार्ड, बेस्ट मोबिलाइजर अवार्ड, बेस्ट एक्सटेंशन साइंटिस्ट, बेस्ट एक्सटेंशन प्रोफेशनल अवार्ड, तीन यंग साइंटिस्ट अवार्ड्स के साथ अन्य पुरस्कार और मान्यता शामिल हैं। उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में 100 लेख प्रकाशित किए हैं। 18 पुस्तकों के अलावा, 53 बुलेटिन, 16 पुस्तक अध्याय भी उनके क्रेडिट में हैं। वर्तमान में वह मध्य और पूर्वी भारत में आईसीएआर की कृषि विज्ञान केन्द्रों की प्रणाली के साथ अनुसंधान और विस्तार में लगे हुए हैं। उन्होंने केवीके केएमए केवीके-रिंग कॉन्सेप्ट, केवीके टेक्नोलॉजी पार्क, केवीके - एटीएमए कन्वर्जेस मॉडल और मेथोडोलॉजिकल इनिशिएटिव्स फॉर एक्सटेंषन रिसर्च, न्यूट्री- एसएमएआरटी विलेज, एग्री- प्रीनशिपशिप जैसी अवधारणाओं को शुरू किया और लागू किया है। वह आईसीएआर स्तर पर विभिन्न महत्वपूर्ण समितियों के सदस्य और कृषि विश्वविद्यालयों में विस्तार मामलों के सलाहकार रहे हैं।
डॉ. आशीष कुमार त्रिपाठी ने वर्ष 1999 में जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय से पादप रोग विज्ञान में स्नातकोत्तर तथा वर्ष 2002 में जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर से पी.एच. डी. की उपाधि प्राप्त की। जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के अर्न्तगत वर्ष 2005 में प्रशिक्षण सहायक (पौध संरक्षण) तथा वर्ष 2007 से विश्वविद्यालय के विभिन्न कृषि विज्ञान केन्द्रों में वैज्ञानिक (पौध संरक्षण) के रूप में कार्य कर रहे हैं। डॉ. त्रिपाठी द्वारा 18 राष्ट्रीय व 8 अंर्तराष्ट्रीय कान्फ्रेंस में भाग लेकर शोध पत्रों का प्रस्तुति करण किया। इनके द्वारा 26 अनुसंधान पत्र, 2 पुस्तक, 7 तकनीकी प्रसार पुस्तिका, 5 कृषक उपयोगी पुस्तिकायें तथा 150 से अधिक प्रचलित लेखों का हिन्दी में प्रकाशन किया गया। आपने वर्ष 2007 से 2011 तक तथा 2016-18 तक भारतीय पौध ा संरक्षण ऐसोसिएशन, हैदराबाद के काउन्सलर के रूप में कार्य किया।भारतीय कृषि विज्ञान समिति नई दिल्ली के वर्ष 2016-20 तक लिये काउन्सलर रहे। डॉ. आशीष त्रिपाठी को वर्ष 2003 में म.प्र. विज्ञान व प्रौद्योगिकी परिषद भोपाल द्वारा "म.प्र. युवा वैज्ञानिक सम्मान' प्राप्त हुआ, 26 जनवरी 2020 को जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय द्वारा उत्कृष्ट कार्य हेतु सम्मानित किया गया। वर्ष 2015 में भारतीय विस्तार शिक्षा समिति नई दिल्ली द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में तथा 2020 में भारतीय पादप रोग विज्ञान समिति नई दिल्ली द्वारा "श्रेष्ठ शोधपत्र प्रस्तुतिकरण सम्मान तथा वर्ष 2016 में महारणा प्रताप कृषि व प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर में आयोजित 21 दिवसीय ग्रीष्मकालीन प्रशिक्षण में "श्रेष्ठ प्रतिभागी" का प्रमाण पत्र दिया गया। भारतीय पौध संरक्षण ऐसोसिएशन, हैदराबाद व जीव विज्ञान समिति, सतना द्वारा वर्ष 2016 में "सोसायटी फैलो सम्मान' से सम्मानित किया गया।
नितिन कुमार सिंघई का जन्म अप्रैल 1969 में जबलपुर में हुआ संपूर्ण शिक्षा-दीक्षा जबलपुर से ग्रहण करने के बाद सन् 1995 से कृषि विज्ञान केन्द्र प्रणाली में निरंतर कार्य कर रहे हैं। कृषि विज्ञान केन्द्र शहडोल में कार्यरत रहने के दौरान आपके अथक एवं सघन प्रयासों से शहडोल एवं पड़ोसी जिला अनूपपुर में श्री पद्धति से धान उत्पादन न केवल प्रारंभ हुआ वरन् किसानों के बीच यह पद्धति काफी लोकप्रिय हुई जिसके परिणाम स्वरूप इसका क्षैतिज प्रसार 75,000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में संभव हो पाया है। इनके द्वारा लिखित तकनीकी पुस्तिका "श्री पद्धति से धान उत्पादन एक प्रयास अनंत संभावनायें लोकप्रिय प्रकाशन है। श्री सिंघई के द्वारा जैव उर्वरकों का व्यापक प्रभावी तकनीकी प्रचार प्रसार करने से इनका प्रयोग किसानों के द्वारा बहुतायत में किया जाता है। कृषि विज्ञान केन्द्र के माध्यम से कृषि तकनीकों को सरल सुबोध एवं रोचक शैली में प्रस्तुत करने के कारण इनकी विशिष्ट पहचान है।
डॉ. रश्मि शुक्ला ने 1993 में ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट में मास्टर डिग्री एवं 2004 में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। डॉ. शुक्ला ने 01 फरवरी 2019 में कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख (मुखिया) के रूप में पदभार संभाला। सन 2019 में ही ज.ने. कृ.वि.वि. एवं बी.एस.एल. कॉफ्रेंस एंड एक्जीबिशन प्राइवेट लिमिटेड न्यू दिल्ली द्वारा आयोजित 'राष्ट्रीय कृषि उदय मेला में डॉ. शुक्ला को “टेक्नोलॉजिकल एक्जीबिशन अवार्ड से नवाजा गया। उद्यान शास्त्र विभाग ज. ने. कृ. वि. वि. द्वारा 2019 में सर्वश्रेष्ठ पोस्टर अवार्ड एवं बंसल न्यूज द्वारा प्रगति के पथ पर मध्यप्रदेश कार्यक्रम में सम्मान पत्र प्राप्त हुआ। सन् 2020 में सोसाइटी ऑफ फार्मकोग्नोसी एंड फाइटोकेमिस्ट्री न्यू दिल्ली द्वारा प्रख्यात वैज्ञानिक पुरुस्कार से सम्मानित किया गया। विभिन्न जर्नलों में लगभग 35 शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। 2 टेक्स्ट बुक, 2 एडिटेड बुक एवं लगभग 4 बुक चैप्टर प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त 80 प्रसार प्रचार लिटरेचर एवं 83 आलेख विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। बुकलेट्स एवं बुलेटिन के लगभग 53 प्रकाशन हैं।