ISBN: 9788196560669
Year: 2024
Binding: Paperback
Language: Hindi
Total Pages: 275
इस पुस्तक में मरुभूमि में जल-संरक्षण की सीख पीढ़ियों से चली आ रही प्रकृति से तालमेल बैठाने में सुंदर परंपराओं को गूँथने वाले समाज के नैसर्गिक गुणों की गाथा, जल और समाज के शताब्दियों से भावनात्मक रिश्तों के अपनत्व की कहानी है, ताकि आगत पीढ़ियों को जल- संकट से जूझना न पड़े। मरुभूमि के निवासियों के लिए वर्षा जल की एक - एक बूँद का महत्त्व गौ घृत के संचय से भी अधिक कीमती रहा है। मरु वासियों ने वर्षा जल को अमृत मान इसे अपनी लोक संस्कृति के जीवन तत्व का अभिन्न अंग बना दिया। मीना स्वयं इसी समाज का अंग हैं । उन्होंने मरुभूमि के इस विराट जल वैभव और मरुवासिओं के जीवन में इसके प्रभाव को बारीकी से समझा और वर्षा, बादल, पानी को लेकर लोक मेधा से उपजे ज्ञान को संकलित कर उसका निचोड़ इस पुस्तक में रख दिया है। पुस्तक में जल के प्रकारों (पालर, पाताल एवं रेजानी) से संबंधित जल-स्थापत्य का निर्माण तत्कालीन टेक्नोलॉजी का विस्तृत विवरण दिया है। डॉ. मीना ने अथक परिश्रम से तथ्य और साक्ष्य जुटाकर तकनीकी रूप से ग्राफ, प्रारूप, अभिलेखीय संदर्भों के भिन्न-भिन्न उदाहरणों के माध्यम से पुस्तक रूप में सुंदर विमर्श प्रस्तुत किया है। उन्होंने कथित साक्षर समाज द्वारा निरक्षर मान ली गई हमारी देशज लोक- प्रज्ञा की सुंदर बानगी प्रस्तुत की गई है। थार मरुस्थल क्षेत्र में विशाल जल प्रबंधन खड़ा करने के लिए विभिन्न भागीदारों की भूमिका पर विस्तार से अध्ययन किया है। पर्यावरण, नई बसावट से पूर्व जल प्रबंधन, वाणिज्य व्यापार, कृषि जैसे व्यापक विषयों का पुस्तक में उल्लेख किया गया है। यह पुस्तक न केवल जल को लेकर लेखिका की संवेदनशीलता को बल्कि उनके सूक्ष्म अध्ययन को भी रेखांकित करती है।
राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले की भादरा तहसील के डाबड़ी गांव में जन्मी डा. मीना कुमारी (जांगिड़ ) की इतिहास में गहरी रुचि रही है। वर्ष 2007 में इतिहास में स्नातकोत्तर, बीएड, यूजीसी-नेट, सेट(राजस्थान) करने के बाद वे 2009 में दिल्ली विश्वविद्यालय अध्यापन किया। वर्ष 2016 में कोटा विश्वविद्यालय से चूरू मंडल का पारम्परिक जल प्रबंधन, विषय पर पीएचडी के लिए भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, दिल्ली ने उन्हें फैलोशिप दी। आईसीएचआर के प्रोजेक्ट “बीकानेर राज्य की जल व्यवस्था का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में अध्ययनः 1701 ई. से 1950 ई.” में प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में कार्यरत रही हैं । देश की प्रमुख सामाजिक संस्था, दीनदयाल शोध संस्थान के चार प्रोजेक्ट में पिछले छः वर्ष से एसोसिएट डायरेक्टर ( रिसर्च) के तौर पर कार्यरत रही हैं।
इनमें से एक प्रोजेक्ट जल संस्कृति पर केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के साथ, दूसरा, पोषण संस्कृति पर महिला बाल विकास मंत्रालय, और तीसरा, सुजला, केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के साथ चतुर्थ, न्दकमतेजंदकपदह ळवअमतदंदबम ज्ीतवनही ठींतंजपलं ब्पअपसपेंजपवद ॅपेकवउए ब्ंचंबपजल ठनपसकपदह ब्वउउपेपवद के साथ किया है।
राष्ट्रीय -अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में 70 शोधपत्र प्रकाशित। डीडी किसान के लिए ‘प्रकृति उत्सव’ की डाक्यूमेंट्री सीरीज (26एपिसोड) में स्क्रिप्ट राइटिंग एवं शोध में प्रमुख भूमिका रही।
पहली पुस्तक ‘थार मरुस्थल का परंपरागत जल प्रबंधन’ जिसके तीन संस्करण आ चुके हैं। दूसरी पुस्तक “अपनी माटी-अपनी थाती” एवं बहुचर्चित फूड कल्चर एटलस ‘पोषण उत्सव’ में सह निदेशक व संपादक रही । अन्य आगामी पुस्तकें आईआईटी रुड़की से “देशज ज्ञान में बादल” व जल संस्कृति“ जन का जल से जुड़ाव” है। इन सभी कार्यों के साथ प्रमुख सामाजिक व स्वयंसेवी संस्था - समस्त महाजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं। राजस्थान के कोटपुतली क्षेत्र एवम जोधपुर के गाँवों में पंच ‘ज’ संवर्धन के कार्य भी किए। इन्हीं सबके साथ देश के उच्च शिक्षा संस्थानों, आईआईटी, केंद्रिय-राज्य विश्वविद्यालयों में व्याख्यान भी देती रही हैं।
मीना के इन प्रयासों के प्रोत्साहन स्वरूप उन्हें जल शक्ति मंत्रालय के सहयोग से सरकारी टेल द्वारा ‘जल प्रहरी राष्ट्रीय अवार्ड’ , जल शक्ति मंत्रालय से ‘गंगा के लाल अवार्ड’ तथा ैवबपमजल वित ब्वउउनदपजल डवइपसप्रंजपवद वित ैनेजंपदंइसम क्मअमसवचउमदज ;डव्ठप्स्पर््।ज्प्व्छद्ध छमू क्मसीप द्वारा श्ल्वनदह ॅवउंद ैबपमदजपेजश् से पुरस्कृत किया गया है। संप्रति, वे लब्ध प्रतिष्ठित राष्ट्रीय दैनिक राजस्थान पत्रिका के दिल्ली ब्यूरो में विशेष संवाददाता हैं।