ISBN: 9788170196983
Year: 2021
Binding: Paperback
Language: Hindi
Total Pages: 332
1. प्रमुख फसलों का राष्ट्रीय एवं मध्य भारत में परिदृश्य
2. प्रमुख फसलों की उन्नत उत्पादन तकनीक
2.1 धान्य फसलें
2.1.1 धान
2.1.2 गेहूं
2.2 दलहनी फसले
2.2.1उड़द
2.2.2 मूंग
2.2.3 अरहर
2.2.4 चना
2.2.5 मसूर
2.3 तिलहनी फसलें
2.3.1 सोयाबीन
2.3.2 अलसी
2.3.3 सरसों व तोरिया
2.4 सब्जी व मसाला फसलें
2.4.1 आलू
2.4.2 मटर
2.4.3 टमाटर
2.4.4 बैंगन
2.4.5 प्याज
2.4.6 अदरक
2.4.7 मिर्च
3. दलहन आधारित फसल प्रणाली एवं अंतरवर्ती खेती पद्धति
3.1 दलहनी फसलों की मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरता में भूमिका
3.2 चना मसूर आधारित फसल प्रणाली एवं मृदा स्वास्थ्य
3.3 अंतरवर्ती खेती पद्धति
4. मृदा स्वास्थ्य एवं पोषक तत्व प्रबंधन
4.1 पौधों में पोषक तत्वों के कार्य व कमी के लक्षण
4.2 फसलों में समेकित पौध पोषण
4.3 गेहूँ में पोषक तत्वों की कमी के लक्षण एवं निदान
4.4 उत्तम मृदा स्वास्थ्य एवं टिकाऊ फसलोत्पादन हेतु. संसाधन प्रबंधन
4.5 जैविक खेती: एक टिकाऊ एवं लाभदायक खेती पद्धति
5. संरक्षित खेती
5.1.जीरो टिलेज तकनीक से गेहूं व ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती: एक सफलता गाथा
6. फसल सुरक्षा
6.1 बीजोपचार का महत्व
6.2एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन
6.3 पौध रोगों का समन्वित जैविक प्रबंधन
6.4 कृषि में जैव कीटनाशी एवं रोगनाशी उपयोगः एक पर्यावरण हितैशी उपाय
7. कृषि आधारित उद्यम
7.1 केंचुआ खाद का व्यवसायिक उत्पादन
7.2 मधुमक्खी पालन
7:3 लाख उत्पादन एक लाभदायक व्यवसाय
7.4 ऑयस्टर मशरूम की खेती: अतिरिक्त आय का स्रोत
8. निंदाई व छिड़काव के उन्नत यंत्र
8.1 खरपतवार प्रबंधन हेतु आधुनिक यान्त्रिक विधियाँ
8.2 खरपतवारनाशी, फफूँदनाशी एवं कीटनाशी छिड़काव व भुरकाव के यन्त्र
9. कीटनाशकों एवं फफूँदनाशकों के तकनीकी नाम, व्यापारिक नाम, प्रयोग दर तथा लक्षित कीट एवं रोग
डॉ. अनिल कुमार सिंह ने अपने कॅरियर की शुरुआत वर्ष 1992 में राजा बलवंत सिंह कॉलेज आगरा (उ.प्र.) में एक रिसर्च प्रोजेक्ट से की. इसके बाद उन्होंने केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान, लखनऊ, (उ.प्र.) में जूनियर रिसर्च फैलो के रूप में की एक वर्ष तक कार्य किया। सुदूर संवेदन उपयोग केन्द्र उत्तर प्रदेष, लखनऊ में परियोजना वैज्ञानिक के रूप में उन्होंने जून 1994 से जनवरी, 2007 तक 12 से अधिक वर्षों तक सेवा की। वे 27 जनवरी 2007 को जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर में वैज्ञानिक (मुदा विज्ञान और कृशि रसायन) के रूप में पदस्थापित हुए। उन्होंने मृदा विज्ञान, रिमोट सेंसिंग और जीआईएस के क्षेत्र में कई उन्नत प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में भाग लिया। कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार व संगोष्ठी में भाग लेकर उन्होंने 18 शोध पत्र प्रस्तुत किए। उनकी साख में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित 35 शोध पत्र, प्रतिष्ठित खेती पत्रिकाओं और कृषि समाचार पत्रों में 130 लोकप्रिय लेख, 85 प्रसार पत्रक व पैम्फलेट और पांच पुस्तक अध्याय शामिल हैं। वे तीन किताबों, 10 तकनीकी बुलेटिन, एक प्रयोगषाला मैनुअल और तीन प्रशिक्षण मैनुअल के लेखक हैं। इसके अलावा कई शोध और तकनीकी रिपोर्ट, सफलता की कहानियां और केस स्टडीज उनके द्वारा तैयार किए गए हैं। उन्होंने मृदा परीक्षण, मृदा परीक्षण के महत्व, पोषक तत्वों के संतुलित अनुप्रयोग, दा स्वास्थ्य और पोषक तत्व प्रबंधन और फसलों के निरंतर उत्पादन और उत्पादकता के लिए एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन पर 23 आकाशवाणी तथा 7 टीवी वार्ताएँ दी हैं।
डॉ. श्याम रंजन कुमार सिंह, ए.आर.एस. में शीर्ष पर रहे और विवेकानंद पर्वतीय कृषि विज्ञान संस्थान (आईसीएआर). अल्मोड़ा, उत्तराखंड में वैज्ञानिक (कृषि विस्तार) के रूप में अपना करियर शुरू किया। उन्होंने कृषि विज्ञान संस्थान, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी (यू.पी.) से कृषि में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने एमएससी और पीएच. डी. डेयरी विस्तार में राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल (हरियाणा) से पूरी की। उन्होंने पूरे शैक्षणिक काल में योग्यता छात्रवृत्ति प्राप्त की। डॉ. सिंह वर्तमान में भारत में भा.कृ. अनु. परि. अटारी, जबलपुर, प्रधान वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत है। वह दस पुरस्कारों के प्राप्तकर्ता है जिनमें एसईई फेलो अवार्ड, आईएसईई फेलो अवार्ड, बेस्ट मोबिलाइजर अवार्ड, बेस्ट एक्सटेंशन साइंटिस्ट, बेस्ट एक्सटेंशन प्रोफेशनल अवार्ड, तीन यंग साइंटिस्ट अवार्डस के साथ अन्य पुरस्कार और मान्यता षामिल हैं। उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में 100 लेख प्रकाशित किए हैं। 18 पुस्तकों के अलावा, 53 बुलेटिन, 16 पुस्तक अध्याय भी उनके क्रेडिट में हैं। वर्तमान में वह मध्य और पूर्वी भारत में आईसीएआर की कृषि विज्ञान केन्द्रों की प्रणाली के साथ अनुसंधान और विस्तार में लगे हुए हैं। उन्होंने केवीके केएमए केवीके रिंग कॉन्सेप्ट, केवीके टेक्नोलॉजी पार्क, केवीके-एटीएमए कन्वर्जेस मॉडल और मेथोडोलॉजिकल इनिशिएटिव्स फॉर एक्सटेंशन रिसर्च, न्यूट्री-एसएमएआरटी विलेज, एग्री- प्रीनशिपशिप जैसी अवधारणाओं को शुरू किया और लागू किया है। वह आईसीएआर स्तर पर विभिन्न महत्वपूर्ण समितियों के सदस्य और कृषि विश्वविद्यालयों में विस्तार मामलों के सलाहकार रहे हैं।
. जय सिंह, वैज्ञानिक (पौध संरक्षण) ने कृषि विज्ञान केन्द्र, सिंगरौली द्वारा कृषि तकनीकी विस्तार क्षेत्र में सेवा का प्रारम्भ जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर के नियन्त्रणाधीन कृषि विज्ञान केन्द्र सीधी से दिनांक 29 मार्च 2007 से प्रारम्भ किया। श्री सिंह द्वारा 6 राष्ट्रीय एवं एक अन्तराष्ट्रीय प्रशिक्षणों में भाग लिया गया तथा अब तक श्री सिंह द्वारा राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में कुल 33 शोध पत्रों का प्रकाशन, 4 बुक चैप्टर 4 रिव्यू आर्टिकल, एवं विभिन्न सेमीनार, कान्फ्रेंस व सिम्पोजियम में कुल 43 शोध पत्रों का प्रस्तुतीकरण किया जा चुका है जिसमें से एक मौखिक प्रस्तुतीकरण एवं दो पोस्टर प्रस्तुतीकरण हेतु पुरस्कृत भी किया गया। डॉ. जय सिंह द्वारा कृषकों के ज्ञानोन्मुखी कृषि की उन्नत तकनीकी विषयक 3 पुस्तकों, 15 लघु पुस्तकों, 65 लोकप्रिय लेखों का भी सम्पादन किया गया। डॉ. जय सिंह को उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए विभिन्न समितियों के द्वारा असोसिएट यंग साइंटिस्ट, यंग साइटिस्ट, बेस्ट एक्सटेन्शन साइंटिस्ट आउट स्टैंडिंग सर्विस जैसे अवार्डो के साथ-साथ पदस्थापना जिलों के कलेक्टर महोदय द्वारा समय समय पर उत्कृष्ट कार्य हेतु प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया है। डॉ. सिंह के नेतत्व में कृषि विज्ञान केन्द्र, सिंगरौली को जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्व विद्यालय, जबलपुर द्वारा दो बार उत्कृष्ट कार्यों हेतु प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया।
रश्मि शुक्ला ने 1903 में ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट में मास्टर डिग्री एवं 2004 में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। डॉ. शुक्ला ने 01 फरवरी 2019 में कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख (मुखिया) के रूप में पदभार संभाला। सन 2019 में ही ज.ने.कृ.वि.वि. एवं बी.एस.एल. कॉफ्रेंस एंड एक्जीबिशन प्राइवेट लिमिटेड न्यू दिल्ली द्वारा आयोजित 'राष्ट्रीय कृषि "उदय मेला में डॉ. शुक्ला को 'टेक्नोलॉजिकल एक्जीबिशन अवार्ड से नवाजा गया। उद्यान शास्त्र विभाग ज.ने.कृ.वि.वि. द्वारा 2019 में सर्वश्रेष्ठ पोस्टर अवार्ड एवं बंसल न्यूज द्वारा प्रगति के पथ पर मध्यप्रदेश कार्यक्रम में सम्मान पत्र प्राप्त हुआ। सन् 2020 में सोसाइटी ऑफ फार्मकोग्नोसी एंड फाइटोकेमिस्ट्री . न्यू दिल्ली द्वारा प्रख्यात वैज्ञानिक पुरुस्कार से सम्मानित किया गया। विभिन्न जर्नलों में लगभग 35 शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। 2 टेक्स्ट बुक, 2 एडिटेड बुक एवं लगभग 4 बुक चैप्टर प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त 80 प्रसार प्रचार लिटरेचर एवं 83 आलेख विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाषित हो चुके हैं। बुकलेट्स एवं बुलेटिन के लगभग 53 प्रकाशन हैं।
डॉ. ओम गुप्ता का जन्म सन् 1956 में हुआ। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर से प्लांट पैथोलॉजी में स्नात्कोत्तर तथा रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर से डॉक्टोरेट की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय में 37 वर्षों तक विभिन्न पदों पर रहते हुए प्रोफेसर और हेड प्लांट पैथोलॉजी पद तक कार्य किया। 2014 में जवाहरलाल नेहरू कृषि विष्वविद्यालय की प्रथम महिला अधिष्ठाता बनी और 2018 में प्रथम निदेशक विस्तार सेवायें के रूप में चुना गया। दलहनी फसलों विशेषतः चना के रोगों पर काम किया तथा ख्याति और प्रसिद्धि हासिल की। आईसीएआर द्वारा 2006 से 2014 तक राष्ट्रीय स्तर पर अखिल भारतीय चना अनुसंधान डॉ. गुप्ता को वर्ष 2003 में आई.एस.पी.आर.डी. अवार्ड, कृषि और प्रौद्योगिकी में परियोजना के प्रमुख अन्वेशक (फसल संरक्षण) रूप में नामांकित किया गया। वैज्ञानिक विकास सोसायटी द्वारा 2016 में प्लांट पैथोलॉजी लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड, 2017 में हरित रत्न अवार्ड, 2020 में डी.पी. मिश्रा और आर. एन. पाण्डे आई.पी.एस. सर्वोच्च महिला वैज्ञानिक 2019 अवार्ड और फरवरी, 2020 में भोपाल में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में इंडियन सोसाइटी ऑफ पल्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट द्वारा आई.एस.पी.आर.डी. उत्कृष्ट पुरस्कार प्राप्त हुआ का गुप्ता ने राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर 85 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित किये हैं। इसके अतिरिक्त विभिन्न तकनीकी पुस्तिकायें, मैनुअल पुस्तक अध्याय एवं समीक्षा शोध पत्रों के प्रकाशन आपके द्वारा किए गए हैं। आपने इकार्ड आईसीएआर द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की यात्रा कार्यशाला में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए नेपाल, मोरक्को एवं नीदरलैंड का दौरा किया तथा शोध पत्र प्रस्तुत किये।