About The Book
यह पुस्तक “भूमि चारण के लिए मृदा प्रबंधन” मृदा विज्ञान और कृषि के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण योगदान है, जिसमें भूमि की उर्वरता बनाए रखने, उपज बढ़ाने और टिकाऊ कृषि पद्धतियों को अपनाने पर विशेष बल दिया गया है। लेखकगण ने इस पुस्तक में यह स्पष्ट किया है कि खेती से पहले मृदा का सही प्रकार से परीक्षण, सुधार और प्रबंधन करना किस प्रकार भूमि की गुणवत्ता को बनाए रखने में सहायक होता है। इसमें मृदा की भौतिक, रासायनिक और जैविक विशेषताओं के आधार पर उपयुक्त प्रबंधन तकनीकों को सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है। पुस्तक में मृदा क्षरण, जल संचयन, पोषक तत्व प्रबंधन, हरित खाद, फसल चक्र और कार्बन संरक्षण जैसे विषयों पर विस्तृत चर्चा की गई है। इसके अलावा इसमें क्षेत्र विशेष की जलवायु और मिट्टी के अनुसार कौन से उपाय प्रभावशाली रहेंगे, यह भी विस्तार से समझाया गया है। यह पुस्तक कृषक समुदाय, कृषि छात्रों, वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं के लिए अत्यंत उपयोगी है, जो मृदा संरक्षण और भूमि उपयोग की सतत रणनीतियों को समझने और अपनाने के इच्छुक हैं। यह न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समृद्ध है, बल्कि व्यावहारिक अनुभवों पर भी आधारित है, जिससे यह हर स्तर के पाठकों के लिए पठनीय और उपयोगी बनती है।
About Author
डॉ. धर्मवीर सिंह ने अपनी करियर की शुरुआत आईसीएआर-भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान, में वैज्ञानिक के
रूप में जनवरी, 1997 में की। उन्होंने अपनी स्नातक एवं स्नातकोत्तर (मृदा विज्ञान) की डिग्रियाँ गोविन्द वल्लभ पन्त
कृषि एवं प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर से और पीएच.डी डिग्री मृदा विज्ञान और कृषि रसायन में भारतीय कृषि
अनुसंधान संस्थान (आइएआरआइ), नई दिल्ली से पूरी की थी। पिछले 27 वर्षों में, डॉ. सिंह ने मृदा और जल संरक्षण
और वाटरशेड प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनकी मुख्य उपलब्धियों में पश्चिमी और पूर्वी
घाटों की विशेषताए एवं उनका मानचित्रण, तटीय बेल्ट की विशेषताए एवं मृदा अपरदन का आकलन और केरल और
तमिलनाडु के लिए मृदा अपघात और मृदा हानि सहनशीलता सीमाओं का आकलन, 50 से अधिक वाटरशेड
परियोजनाओं का सर्वेक्षण, योजना और मूल्यांकन, नीलगिरी में सब्जी फसलों के लिए एकीकृत पोषण प्रबंधन
(आइएनएम) पैकेज का विकास, और नीलगिरी में भूस्खलन का चरित्रण और प्रबंधन शामिल है। उन्होंने कोयंबटूर के
साल्सियूर, नीलगिरी के इडुहट्टी और इरोड के एयालूर में तीन मॉडल वाटरशेड का विकास किया है। हाल ही में, उन्होंने
उत्तराखंड के सूखे हिली क्षेत्र में सहभागी जल संसाधन प्रबंधन का एक जीवंत मॉडल विकसित किया है, जिससे
किसानों की आय कई गुना बढ़ गयी है। उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें 2005 में लाल बहादुर शास्त्री यंग साइंटिस्ट
अवार्ड और 2013 में वसंतराव नाइक अवार्ड प्रदान किया गया। 2008 में उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि मंत्रालय
द्वारा इंडो-यूएस नॉर्मन ई. बोरलाग अंतरराष्ट्रीय कृषि और विज्ञान और प्रौद्योगिकी फेलोशिप से सम्मानित किया गया
था। उनके क्रेडिट में 175 से अधिक प्रकाशनें हैं, जिनमें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय जर्नल में शोध पेपर्स, किताबें, मैन्युअल्स,
बुलेटिन्स, बुक चैप्टर्स, रिपोर्ट्स आदि शामिल हैं।
डॉ. देवीदीन यादव ने बीएससी (एजी) आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या
(यूपी) और एम.एससी. एवं पीएच.डी. (सस्य विज्ञान) भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आइएआरआइ), नई दिल्ली से
पूरी की है। डॉ. यादव ने 2018 में भारतीय कृषि सेवा (एआरएस) की शुरवात की और वर्तमान में आईसीएआर-
भारतीय मृदा एवं जल संक्षारण संस्थान, देहरादून में वैज्ञानिक (सस्य विज्ञान) के रूप कार्यरत हैं। उनके विशेषज्ञता क्षेत्र
में मृदा और जल संरक्षण, कृषि विविधता और उत्तर-पश्चिमी हिमालय में कुशल और उत्पादक कृषि प्रणालियों का
विकास है। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय जर्नल में 30 से अधिक शोध पत्र, 3 संपादित किताब, 6 पुस्तक अध्याय, और
20 से अधिक लेख प्रकाषित किए हैं। उन्हें विभिन्न प्रतिष्ठित पुरस्कार जैसे आइएएसडब्लूसी उभरता वैज्ञानिक पुरस्कार
2023, जीकेवी सोसायटी, आगरा, उत्तर प्रदेश, द्वारा सर्वश्रेष्ठ पीएच.डी. थीसिस पुरस्कार, वीडीगुड सोसायटी, चेन्नई,
तमिलनाडु द्वारा सर्वश्रेष्ठ शोधकर्ता पुरस्कार, और आईसीएफएआई, रांची, झारखंड द्वारा सर्वश्रेष्ठ मौखिक प्रस्तुति
पुरस्कार प्राप्त किए हैं। वे विभिन्न जर्नल जैसे इंडियन जर्नल ऑफ एग्रोनोमी, अनल्स ऑफ सॉइल एंड प्लांट रिसर्च, खाद्य
विज्ञान और इंजीनियरिंग जर्नल और फ्रंटियर्स इन एग्रोनोमी और फ्रंटियर्स इन सॉइल साइंस के समीक्षा संपादक और
सहायक संपादक के रूप में सेवाएं दे रहे हैं।
डॉ. एम. मधु ने अपनी स्नातक, स्नातकोत्तर और पीएच.डी. की पढ़ाई यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेस (यूएएस),
जी.के.वी.के, बेंगलुरु, कर्नाटक से पूरी की है। उन्होंने एम.एससी. और पीएच.डी. के दौरान यूनिवर्सिटी ऑफ
एग्रीकल्चरल साइंसेस गोल्ड मेडल प्राप्त किया है। डॉ. मधु ने 1993 में भारतीय कृषि सेवा (एआरएस) की शुरवात की
और वर्तमान में आईसीएआर-भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान, देहरादून के निदेशक के रूप में कार्यरत हैं। उनके
30 वर्षों के सेवा काल में, उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों में मृदा और जल संरक्षण उपायों के विकास में महत्वपूर्ण
योगदान दिया है। उन्हें प्रतिष्ठित यूएसडीए ग्लोबल रिसर्च एलायंस (जीआरए) फेलोशिप प्रोग्राम-2011, वसंत राव
नाइक पुरस्कार-2013, आइएएसडब्लूसी गोल्ड मेडल-2010, आइएएसडब्लूसी फेलो-2014, डॉ. के.जी. तेजवानी
पुरस्कार 2016-17 और आईसीएआर-टीम रिसर्च अवार्ड-2017 से सम्मानित किया गया है। उनके क्रेडिट में 200 से
अधिक प्रकाशन शामिल हैं, जिनमें शोध पत्र, संपादित पुस्तकें, पुस्तक अध्याय, मैन्युअल, तकनीकी रिपोर्ट्स और
बुलेटिन्स, संगोष्ठी/कार्यशाला/सेमिनार के लेख, लोकप्रिय लेख आदि शामिल हैं, और वे कई कृषि संगठनों के सदस्य भी
हैं।
डॉ सुभाष बाबू, पीएचडी (आईएआरआई, नई दिल्ली), वर्तमान में आईसीएआर-आईएआरआइ, नई दिल्ली, भारत में
डिवीजन ऑफ एग्रोनॉमी में वरिष्ठ वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत हैं। डॉ. बाबू भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के
सहयोगी फैलो, राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी, (एनएएएस), के सहयोगी फैलो, भारतीय राष्ट्रीय युवा विज्ञान अकादमी
के सदस्य और इंडियन सोसायटी ऑफ एग्रोनोमी (आईएसए) के सहयोगी फैलो हैं। उन्हें उनके एमएससी (कृषि) के
दौरान बीएचयू, वाराणसी द्वारा डॉ महेन्द्र सिंह स्मारक स्वर्ण पदक और बीएचयू पदक से सम्मानित किया गया है। वह
अपने एमएससी के दौरान आईसीएआर-जेआरएफ और अपने पीएचडी के दौरान आईसीएआर-एसआरएफ के प्राप्तकर्ता
भी हैं। उनके शोध का मुख्य क्षेत्र कार्बन प्रबंधन और जलवायु- प्रतिकूल कृषि-खाद्य उत्पादन प्रणालियों को डिजाइन
करना है। उन्होंने साल भर आय सृजन, पोषण और पर्यावरण सुरक्षा के लिए विभिन्न फसल और एकीकृत कृषि प्रणाली
मॉडल विकसित किए हैं। उन्होंने कार्बन-न्यूट्रल वानिकी प्रणालियों की पहचान की है। डॉ बाबू के राष्ट्रीय और
अंतरराष्ट्रीय ख्याति की जर्नलं में 300 से अधिक प्रकाशन और 5 पुस्तकें हैं। उन्हें आईसीएआर अनुसंधान परिसर, सिक्किम
केंद्र के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक-2016 और एनईएसए युवा वैज्ञानिक ऑफ द ईयर अवार्ड, आईएसए द्वारा पीएस देशमुख युवा
सस्य वैज्ञानिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। डॉ. बाबू नीदरलैंड्स के ग्लोबल लैंड प्रोग्राम और एफएओ-
एफएसएन कार्यक्रम के सदस्य हैं। वह फ्रंटियर्स ऑफ एग्रोनॉमी, फ्रंटियर्स ऑफ सोइल साइंसेज, इंडियन जर्नल ऑफ
एग्रोनॉमी, इंडियन जर्नल ऑफ हिल फार्मिंग के एसोसिएट एडिटर और जर्नल ऑफ प्लांट डिजीज साइंसेज के वरिष्ठ
संपादक हैं।