About The Book
देश की निरंतर बढ़ती हुई आबादी के लिए खाद्यान्न की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु कृषि उत्पादन एवं पौध संरक्षण तकनीकी की अहम भूमिका है। देश के कुल खाद्यान्न उत्पादन का 18 प्रतिशत हिस्सा कीडों-मकोड़ों, पौध रोग, खरपतवार, चूहों, चिड़ियों एवं निमेटोड के कारण कृषि उत्पादन की विभिन्न अवस्थाओं एवं भण्डारण के दौरान नष्ट हो जाता है। कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी के लिये हमारे सामने दो महत्वपूर्ण विकल्प हैं पहला तो यह कि हम पैदावार बढ़ाने के लिए कृषि योग्य भूमि में वृद्धि करें जो कि लगभग असंभव है। अब हमारे पास सिर्फ दूसरा महत्वपूर्ण विकल्प बचता है कि कम से कम क्षेत्रफल से अधिक से अधिक पैदावार लें जो कि उन्नत किस्मों का उपयोग, समन्वित उर्वरक उपयोग एवं पौध सुरक्षा इत्यादि कारकों पर निर्भर करता है।
फसल सुरक्षा रसायन खरपतवार कीट एवं रोगों से फसलों की सुरक्षा तो करते हैं, परन्तु जलवायु एवं मिट्टी द्वारा रसायन पर्यावरण में व्याप्त होने के साथ-साथ खाद्यान्नों में भी इनके अवशेष रह जाते हैं। परिणामस्वरूप मानव एवं पशुओं को प्रदूशित खाद्यान्न का उपयोग जीवन यापन के लिये करना पड़ता है, जो स्वास्थ की दृष्टि से हानिकारक है। हमारे देश में पौध संरक्षण औषधियों का उपयोग प्रतिवर्ष 2.5 प्रतिशत की गति से बढ़ रहा है जो विश्व स्तर का लगभग 3 प्रतिशत है। लगभग 96 हजार मैट्रिक टन पौध संरक्षण औषधियाँ प्रतिवर्ष खेतों में उपयोग की जाती है। किसानों द्वारा पौध संरक्षण औषधियों का अंधाधुन्ध उपयोग निश्चित रूप से वैज्ञानिकता खो चुका है।
कृषि में महंगे रसायनों पर होने वाले खर्च को कम करके पर्यावरण को नुकसान पहुँचाये बिना कृषि तथा प्राकृतिक संसाधनों को भविष् के लिये संचित रखते हुये उनका सफल उपयोग करके फसलों के उत्पादन में लगातार वृद्धि करना तथा जनसमुदाय की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये कीट, रोग एवं खरपतवारों की पहचान कर समय पर नियंत्रण आवश्यक है।
About Author
डॉ. आशीष कुमार त्रिपाठी ने वर्ष 1999 में जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय से पादप रोग विज्ञान में स्नातकोत्तर तथा वर्ष 2002 में जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर से पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के अर्न्तगत वर्ष 2005 में प्रशिक्षण सहायक (पौध संरक्षण) तथा वर्ष 2007 से विश्वविद्यालय के विभिन्न कृषि विज्ञान केन्द्रों में वैज्ञानिक (पौध संरक्षण) के रूप में कार्य कर रहे हैं। डॉ. त्रिपाठी द्वारा 18 राष्ट्रीय व 8 अंर्तराष्ट्रीय कान्फ्रेंस में भाग लेकर शोध पत्रों का प्रस्तुति करण किया। इनके द्वारा 26 अनुसंधान पत्र, 2 पुस्तक. 7 तकनीकी प्रसार पुस्तिका, 5 कृषक उपयोगी पुस्तिकायें तथा 150 से अधिक प्रचलित लेखों का हिन्दी में प्रकाशन किया गया। आपने वर्ष 2007 से 2011 तक तथा 2016-18 तक भारतीय पौध संरक्षण ऐसोसिएशन, हैदराबाद के काउन्सलर के रूप में कार्य किया। भारतीय कृषि विज्ञान समिति नई दिल्ली के वर्ष 2016-20 तक लिये काउन्सलर रहे। डॉ. आशीष त्रिपाठी को वर्ष 2003 में म.प्र. विज्ञान व प्रौद्योगिकी परिशद भोपाल द्वारा "म.प्र. युवा वैज्ञानिक सम्मान" प्राप्त हुआ, 26 जनवरी 2020 को जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय द्वारा उत्कृष्ट कार्य हेतु सम्मानित किया गया। वर्ष 2015 में भारतीय विस्तार शिक्षा समिति नई दिल्ली द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में तथा 2020 में भारतीय पादप रोग विज्ञान समिति नई दिल्ली द्वारा "श्रेष्ठ शोधपत्र प्रस्तुतिकरण सम्मान" तथा वर्ष 2016 में महारणा प्रताप कृषि व प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर में आयोजित 21 दिवसीय ग्रीष्मकालीन प्रशिक्षण में "श्रेष्ठ प्रतिभागी का प्रमाण पत्र दिया गया। भारतीय पौध संरक्षण ऐसोसिएशन, हैदराबाद व जीव विज्ञान समिति, सतना द्वारा वर्ष 2016 में "सोसायटी फैलो सम्मान" से सम्मानित किया गया।
डॉ. अनिल कुमार सिंह का जन्म सन् 1971 में आगरा विश्वविद्यालय से कृषि रसायन एवं मृदा विज्ञान में हुआ। उन्होंने स्नात्कोत्तर तथा डॉ. बी. आर. अम्बेडकर विश्वविद्यालय, आगरा (उ.प्र.) से डॉक्टोरेट की उपाधि प्राप्त की। डॉ. सिंह प्रारम्भ में राजा बलवंत सिंह कॉलेज आगरा में एक अनुसंधान परियोजना में क्षेत्र सहायक रहे तत्पश्चात उन्होंने
केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान, लखनऊ में जूनियर रिसर्च फेलो के रूप में अल्पअवधि सेवा की। सुदूर संवेदन उपयोग केन्द्र उत्तर प्रदेश, लखनऊ में परियोजना वैज्ञानिक के रूप में उन्होंने जून 1994 से जनवरी, 2007 तक 12 वर्ष से अधिक समय तक कार्य किया। वे 27 जनवरी 2007 को जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर में वैज्ञानिक (मृदा विज्ञान और कृषि रसायन) के रूप में पदस्थापित हुए। उन्होंने मृदा विज्ञान, रिमोट सेंसिंग और जीआईएस के क्षेत्र में कई उन्नत प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में भाग लिया। कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार व संगोष्ठी में भाग लेकर उन्होंने 18 शोध पत्र प्रस्तुत किए। उनकी साख में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाषित 35 शोध पत्र, प्रतिष्ठित खेती पत्रिकाओं और कृषि समाचार पत्रों में 130 लोकप्रिय लेख, 85 प्रसार पत्रक व पैम्फलेट और पांच पुस्तक अध्याय शामिल हैं। वे तीन किताबों, 10 तकनीकी बुलेटिन, एक प्रयोगशाला मैनुअल और तीन प्रशिक्षण मैनुअल के लेखक हैं। इसके अलावा कई शोध और तकनीकी रिपोर्ट, सफलता की कहानियां और केस स्टडीज उनके द्वारा तैयार किए गए हैं। उन्होंने मृदा परीक्षण, मृदा परीक्षण के महत्व, पोषक तत्वों के संतुलित अनुप्रयोग, मृदा स्वास्थ्य और पोषक तत्व प्रबंधन, और फसलों के निरंतर उत्पादन और उत्पादकता के लिए एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन पर 23 आकाशवाणी तथा 8 टीवी वार्ताएँ दी हैं। उन्हें विभिन्न सोसाइटियों द्वारा कई प्रतिष्ठित अवार्ड प्रदान किये गये हैं।