ISBN: 81-7019-483-3,9788170194835
Year: 2014
Binding: Hardbound
Language: Hindi
Total Pages: 90
देश में हर साल करोड़ों रूपये के अनाज, फल, सब्जियां, जंगली उत्पाद तथा औषधीय पदार्थों की फसलें सुखाने की सही वैज्ञानिक तकनीक के अभाव में नष्ट हो जाती है। पारम्परिक ढंग से सुखाने में मेहनत अधिक लगती है तथा गुणवत्ता में कमी आती है। इस समस्या से निदान पाने के लिए सौर ऊर्जा का दोहन करते हुए सौर शुष्कक का विकास किया गया है। हमारा विश्वास है कि इस शुष्कक के उपयोग से किसानों तथा लाभार्थियों को अपने उत्पाद मे गुणवत्ता अधिक होने से मूल्यवर्धन होगा।
प्रस्तुत पुस्तक लेखक का हिन्दी में प्रथम प्रयास है और यह पुस्तक विशेष तौर से किसान पाठकों को ध्यान में रखकर लिखी गइ है ।
इस पुस्तक को बनाने मे पर्यावरण विज्ञान विभाग, मूल विज्ञान विभाग, डा. यशवन्त सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी (सोलन) हिमाचल प्रदेश, टाटा ट्रष्ट, मुम्बई तथा विज्ञान एवं प्रोद्यौगिकी मन्त्रालय, भारत सरकार का, उनके स्त्रोत सामाग्री के उपयोग के लिए, आभार व्यक्त किया जाता है।
हमें आशा है कि यह पुस्तक अपने उद्देश्य की पूर्ति में सफल होगी। पाठकों से प्रतिक्रियाएं तथा सुझाव आमन्त्रित हैं।
लेखक भौतिक विज्ञान में पी.एच.डी. हैं जिसमें सौर ऊर्जा पर शोध कार्य किया गया है । लेखक डा० यशवन्त सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी (सोलन) हिमाचल प्रदेश के पर्यावरण विज्ञान विभाग में वैज्ञानिक के रूप मे कार्यरत है। पिछले दो दशक से भी ज्यादा समय से वह नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकी में शोध एवं विकास कार्य कर रहे हैं। इसी क्रम में उन्होंने विभिन्न प्रकार के उन्नत चूल्हों तथा सौर शुष्कक विकसित किए हैं। इस शोध के परिणाम स्वरूप वर्तमान परोक्ष सौर शुष्कक सफलता पूर्वक प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर स्थापित किए गए हैं।