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Krishi Manjusha (Hindi)

By: A. K. Singh, A. K. Tripathi
₹ 3,595.50 ₹ 3,995.00

ISBN: 9789391734114
Year: 2023
Binding: Hardbound
Language: Hindi
Total Pages: 676

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मानव जाति की शुरुआत से ही कृषि मानव जीवन का एक हिस्सा रही है कृषि संबंधी जानकारी आवश्यकता लगभग उतनी ही पुरानी है जितनी कि स्वयं कृषि। भारतीय कृषि क्षेत्र लग 65 प्रतिशत श्रम शक्ति जगार प्रदान करता है, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 27 प्रतिशत योगदान देता है कुल निर्यात का 21 प्रति स्सा कृषि क्षेत्र से आता है और कई उद्योगों को कृषि क्षेत्र कच्चे माल प्रदान करता है। वन क्षेत्र देश के सकल घरे उत्पाद में अनुमानित 8.4 प्रतिशत और कृषि उत्पादन में 35.85 प्रतिशत योगदान देता है।

भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। गांवों की अधिकांश आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि एवं संबंद्ध क्षेत्रों पर निर्भर है। भारत सरकार ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं कृषि को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से अनेक कौशल विकास योजनायें संचालित की हैं। इस कड़ी में मैनेज, हैदराबाद के निर्देशन में देश में कृषि आदान विक्रेताओं हेतु देसी कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है। उक्त कार्यक्रम का संचालन प्रदेश स्तर पर राज्य कृषि विस्तार एवं प्रशिक्षण संस्थान भोपाल (म.प्र.) द्वारा समस्त जिलों में आत्मा परियोजना के माध्यम से किया जा रहा है। कृषि आदान विक्रेता उर्वरक, बीज, कीटनाशक, कृषि उपकरण, स्प्रेयर एवं मरम्मत सर्विस आदि सेवाएं प्रदाय करते हैं। मौजूदा परिदृश्य में बेहतर फसल उत्पादन व संरक्षण हेतु तकनीकी ज्ञान उपलब्ध कराने तथा कृषि क्षेत्र में निवेश को बढ़ाने की आवश्यकता है। कृषि आदान विक्रेताओं की समस्याओं को दृष्टिगत रखते हुए प्रस्तुत पुस्तक में विभिन्न शीर्षकों के अंतर्गत कृषि पारिस्थितिकी, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, खेती, बीज उत्पादन, सिंचाई प्रौद्योगिकी एवं जल प्रबंधन, खरपतवार प्रबंधन, फार्म उपकरण, कीट एवं व्याधि नियंत्रण, मुख्य स्थानीय फसलों की वैज्ञानिक खेती, कृषि में आदानों से संबंधित कानून, नियम एवं विनियमन, कृषि क्षेत्र से संबंधित योजनायें, कृषि प्रसार दृष्टिकोण एवं विधियां, कृषि से संबंधित अन्य विषयों को सम्मिलित किया गया है।

प्रस्तुत पुस्तक में पाठ्यक्रम को विभिन्न मॉड्यूलों में विभक्त कर सरल भाषा में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है ताकि कृषि आदान विक्रेता तकनीकी ज्ञान अर्जित कर पैरा-एक्सटेंशन कार्यकर्ता के रूप में कृषि विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकें। आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि यह पुस्तक कृषि संस्थानों, कृषि विश्वविद्यालयों सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों, शिक्षकों तथा कृषि प्रसार कार्यकर्ताओं व प्रगतिशील कृषकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

लेखकगण उन सभी पत्र-पत्रिकाओं एवं पुस्तकों के लेखकों, शोधपत्रों, प्रकाशन एजेंसियों एवं संबंधित वेबसाईट्स का आभार प्रकट करते हैं जिनसे इस पुस्तक हेतु संदर्भ लिया गया है। लेखकगण, संचालक राज्य कृषि विस्तार एवं प्रशिक्षण संस्थान भोपाल, संयुक्त संचालक कृषि जबलपुर संभाग, उप संचालक कृषि परियोजना संचालक आत्मा जिला जबलपुर एवं जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय तथा कृषि विज्ञान केन्द्रों के वैज्ञानिकों के भी आभारी है जिन्होंने अपने अमूल्य सुझावों द्वारा पुस्तक को सारगर्भित बनाने में सहयोग दिया है। इस पुस्तक का यह प्रथम प्रकाशन है जिस कारण पुस्तक में कुछ त्रुटिया संभव है अतः पाठकों से सुझाव आमंत्रित है ताकि आगामी संस्करण में त्रुटियों को दूर किया जा सके।

डॉ. अनिल कुमार सिंह का जन्म सन् 1971 में हुआ। उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से कृषि रसायन एवं मृदा विज्ञान में स्नात्कोत्तर तथा डॉ. बी. आर. अम्बेडकर विश्वविद्यालय, आगरा, उत्तर प्रदेश से डॉक्टोरेट की उपाधि प्राप्त की। डॉ. सिंह प्रारम्भ में राजा बलवंत सिंह कॉलेज आगरा में एक अनुसंधान परियोजना में क्षेत्र सहायक रहे। तत्पश्चात उन्होंने केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान, लखनऊ में जूनियर रिसर्च फेलो के रूप में औषधीय एवं सगंध पौधों पर अल्पकालिक शोध कार्य किया। सुदूर संवेदन उपयोग केन्द्र उत्तर प्रदेश, लखनऊ में परियोजना वैज्ञानिक के रूप में उन्होंने जून 1994 से जनवरी, 2007 तक 12 वर्ष से भी अधिक समय तक भूमि उपयोग भूमि आच्छादन मानचित्रण, समस्याग्रस्त मृदाओं का कैडस्ट्रल मानचित्रण, मृदा प्रोफाइल अध्ययन, मृदा गुणवत्ता अध्ययन आदि पर अनुसंधान व विकास कार्य किया। वे 27 जनवरी 2007 को जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर में वैज्ञानिक (मृदा विज्ञान और कृषि रसायन) के रूप में पदस्थापित हुए जहां वे मृदा में उर्वरकों के संतुलित प्रयोग, कार्बन पृथक्करण, मृदा स्वास्थ्य और समेकित पोषक तत्व प्रबंधन व अन्य कृषि उन्नत तकनीकियों के परीक्षण व प्रसार हेतु निरंतर प्रयासरत हैं। । डॉ. सिंह ने मृदा विज्ञान, रिमोट सेंसिंग और जीआईएस के क्षेत्र में कई उन्नत प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में भाग लिया। कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार व संगोष्ठी में भाग लेकर उन्होंने 20 शोध पत्र प्रस्तुत किए। उनकी साख में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित 42 शोध पत्र, प्रतिष्ठित खेती पत्रिकाओं और कृषि समाचार पत्रों में 210 से अधिक लोकप्रिय लेख, 92 प्रसार पत्रक व पैम्फलेट और पांच पुस्तक अध्याय शामिल हैं। वे पांच किताबों, 11 तकनीकी बुलेटिन, एक प्रयोगशाला मैनुअल और तीन प्रशिक्षण मैनुअल के लेखक है। इसके अलावा कई शोध और तकनीकी रिपोर्ट, सफलता की कहानियां और केस स्टडीज उनके द्वारा तैयार किए गए हैं। उन्होंने मृदा परीक्षण, मृदा परीक्षण के महत्व पोषक तत्वों के संतुलित अनुप्रयोग, मृदा स्वास्थ्य और पोषक तत्व प्रबंधन, फसलों के टिकाऊ उत्पादन और उत्पादकता के लिए एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन आदि विषयों पर 26 आकाशवाणी तथा 8 टीवी वार्ताएँ दी हैं। उन्हें विभिन्न सोसाइटियों द्वारा कई प्रतिष्ठित अवार्ड प्रदान किये गये हैं। डॉ. सिंह कई प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं (जरनल्स) के समीक्षक भी है।

 डॉ. आशीष कुमार त्रिपाठी ने वर्ष 1999 में जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय से पादप रोग विज्ञान में स्नातकोत्तर तथा वर्ष 2002 में जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर से पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के अर्न्तगत वर्ष 2005 में प्रशिक्षण सहायक (पौध संरक्षण) तथा वर्ष 2007 से विश्वविद्यालय के विभिन्न कृषि विज्ञान केन्द्रों में वैज्ञानिक (पौध संरक्षण) के रूप में कार्य कर रहे हैं। डॉ. त्रिपाठी द्वारा 18 राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय कान्फ्रेंस में भाग लेकर शोध पत्रों का प्रस्तुतिकरण किया। इनके द्वारा 26 अनुसंधान पत्र, 2 पुस्तक 7 तकनीकी प्रसार पुस्तिका 5 कृषक उपयोगी पुस्तिकायें तथा 150 से अधिक प्रचलित लेखों का हिन्दी में प्रकाशन किया गया। आपने वर्ष 2007 से 2011 तक तथा 2016-18 तक भारतीय पौध संरक्षण एसोसिएशन, हैदराबाद के काउन्सलर के रूप में कार्य किया। इसके अतिरिक्त भारतीय कृषि विज्ञान समिति नई दिल्ली द्वारा वर्ष 2016 से 2022 तक के लिये काउन्सलर नियुक्त किया गया है। डॉ. आशीष त्रिपाठी को वर्ष 2003 में म.प्र. विज्ञान व प्रौद्योगिकी परिषद भोपाल द्वारा "म.प्र. युवा वैज्ञानिक सम्मान' प्राप्त हुआ, 26 जनवरी 2020 को जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय द्वारा उत्कृ ष्ट कार्य हेतु सम्मानित किया। वर्ष 2015 में भारतीय विस्तार शिक्षा समिति नई दिल्ली द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में तथा 2020 में भारतीय पादप रोग विज्ञान समिति नई दिल्ली द्वारा "श्रेष्ठ शोधपत्र प्रस्तुतिकरण सम्मान तथा वर्ष 2016 में महाराणा प्रताप कृषि व प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर में आयोजित 21 दिवसीय ग्रीष्मकालीन प्रशिक्षण में "श्रेष्ठ प्रतिभागी का प्रमाण पत्र दिया गया। भारतीय पौध संरक्षण एसोसिएशन, हैदराबाद व जीव विज्ञान समिति, सतना द्वारा वर्ष 2016 में "सोसायटी फैलो सम्मान से सम्मानित किया गया।

डॉ. यतिराज खरे का जन्म सन् 1971 में हुआ । उन्होंने जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय से विस्तार शिक्षा तथा श्री शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर (उ.प्र.) से डॉक्टोरेट की उपाधि प्राप्त की। डॉ. खरे मई 2000- से जनवरी 2007 तक 08 वर्ष से अधिक समय तक जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान केन्द्र की भा कृ.अ.परिषद वित्तपोषित परियोजना में वरिष्ठ अनुसंधान अध्येता व प्रशिक्षण सहायक रहे। वे 23 जनवरी 2007 को जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर में वैज्ञानिक (कृषि प्रसार) पद पर पदस्थ हुए। आपने कई उन्नत प्रशिक्षण पाठयक्रमों में भाग लिया। कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार व संगोष्ठी में भाग लेकर उन्होंने 15 शोध पत्र प्रस्तुत किए। उनकी साख में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित 32 शोध पत्र, प्रतिष्ठित खेती पत्रिकाओं और कृषि समाचार पत्रों में 125 से अधिक लोकप्रिय लेख, 62 प्रसार पत्रक व पैम्फलेट शामिल हैं ये 2 किताबों, 5 तकनीकी बुलेटिन के लेखक है। इसके अलावा कई शोध और तकनीकी रिपोर्ट, सफलता की कहानियों और केस स्टडीज उनके द्वारा तैयार किए गए हैं। उन्होंने कम लागत व उन्नत तकनीक और फसलों के टिकाऊ उत्पादन और उत्पादकता, प्रशिक्षण प्रबंधन पर 12 आकाशवाणी तथा 6 टीवी वार्ताएँ दी है। उन्हें विभिन्न सोसाइटियों द्वारा कई प्रतिष्ठित अवार्ड प्रदान किये गये हैं। आपने वर्ष 2018 में नेपाल में अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार में भाग लेकर शोध पत्र प्रस्तुत किया।